साकि कि हर निगाह पे बल खा के पी गया
लेहरों से खेलता हुआ लेहरा के पी गया
"ऎ रेहमत-ऎ-तमाम मेरि हर खता मुआफ़
मै इन्तिहा-ऎ-इश्क में घबरा के पी गया"(२)
पीता बगैर इज़्म ये कब थी मेरी मजाल
दर पर्दाह चश्म-ऎ-यार कि शाय पा के पी गया
पास रेह्ता है दूर रेह्ता है
कोइ दिल मे जरूर रेह्ता है
जब से देखा है उन की आखों को
हलका हलका सुरूर रेह्ता है
ऐसे रेहते है वोह मेरे दिल में
जैसे जुल्मत मे नूर रेहता है
अब आदम का ये हाल है हर वक्त
मस्त रेहता है चूर रेहता है
ये जो हलका हलका सरूर है (७)
ये तेरि नज़र का कसूर है
के शराब पीना सिखा दिया
तेरे प्यार ने, तेरि चाह ने
तेरि बेहकी बेहकी निगाह ने
मुझे इक शराबी बना दिया
शराब कैसी , खुमार कैसा
ये सब तुम्हारी नवाजीशे है
पिलाइ है किस्स नज़र से तु ने
के मुझको अपनी खबर नहि है
तेरी बेहकि बेहकि निगाह ने
मुझे इक शराबी बना दिया....
सारा जहान मस्त, जहां का निज़ाम मस्त
दिन मस्त, रात मस्त, सहर मस्त, शाम मस्त
दिल मस्त, शीशा मस्त, सबु मस्त, जाम मस्त
है तेरि चश्म-ऎ-मस्त से हर खास-ऒ-आम मस्त
यूं तो साकी हर तराह कि तेरे मयखाने में है
वोह भी थोडी सी जो इन आखों के पयमाने में है
सब समझता हूं तेरि इश्व-कारि ऐ साकी
काम करती है नज़र नाम है पयमाने का.. बस!
तेरि बहकि बहकि निगाह ने
मुझे इक शराबी बना दिया...
ही गझल नुसरत फतेह अली खान यांनी आपल्या दैवी आवाजात गायलेली आहे. मी ती ऐकली आणि मी तीच्या प्रेमातच पडलो.
आपणही शक्य झाल्यास एकदातरी ऐकावी अशी माझी इच्छा आहे
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